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भारत के लिए वैश्विक व्यापार और विनिर्माण में स्थिति मजबूत करने का अवसर

डॉनल्ड ट्रंप द्वारा अमेरिका को पुनः महान बनाने के लिए उठाए गए व्यापारिक कदमों ने वैश्विक व्यापार व्यवस्था को गहराई से झकझोर दिया है। विशेषकर चीन उनके निशाने पर है, जिससे व्यापारिक नियमों और संधियों का नया ढांचा उभर रहा है। भारत के लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण है कि वह दीर्घकालिक रणनीति के साथ अपने औद्योगिक ढांचे को सुदृढ़ बनाए। चीन और जापान के अनुभव दर्शाते हैं कि रणनीतिक औद्योगिक नीति ही वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूती प्रदान करती है। भारत को व्यापारिक वार्ताओं में तात्कालिक लाभ से ऊपर उठकर दीर्घकालिक औद्योगिक लाभ को प्राथमिकता देनी चाहिए।

अमेरिका को चीन और जापान जैसे देशों की विनिर्माण क्षमताओं की आवश्यकता है क्योंकि वे व्यापार अधिशेष के जरिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था को सहारा देते हैं। इन देशों ने लंबे समय तक रणनीतिक औद्योगीकरण का पालन करते हुए अत्याधुनिक उत्पादन संरचना का विकास किया। भारत, जो अभी भी निर्माण क्षमताओं के विस्तार के प्रारंभिक चरण में है, को इन्हीं मार्गों पर चलते हुए अपनी उत्पादन संरचना को गहराई से मजबूत करना होगा। प्रतिस्पर्धात्मक लाभ के मुक्त व्यापार सिद्धांत की सीमाएं स्पष्ट हो चुकी हैं और अब यह आवश्यक है कि भारत आत्मनिर्भर विनिर्माण क्षमता की ओर बढ़े।

सैद्धांतिक रूप से प्रतिस्पर्धात्मक लाभ आकर्षक हो सकता है लेकिन वस्तु आधारित अर्थव्यवस्था में यह लाभ अस्थिर रहता है। औद्योगीकरण केवल उत्पादन नहीं बल्कि कौशल और नवाचार सीखने की प्रक्रिया है। सभी सफल औद्योगिक राष्ट्रों ने अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा की और उन्हें पनपने का अवसर दिया। भारत को भी अपनी औद्योगिक क्षमता को विकसित करने हेतु संरक्षक नीतियों को पुनर्स्थापित करना चाहिए। अन्यथा, विकसित राष्ट्र बौद्धिक संपदा के नाम पर नियम बनाकर विकासशील देशों की नवाचार क्षमताओं को बाधित करते रहेंगे।

1990 के दशक में भारत ने समय से पूर्व अपनी औद्योगिक नीतियों को त्याग दिया जिससे घरेलू उत्पादन क्षमता प्रभावित हुई। इसके विपरीत, चीन ने न केवल अपने पूंजीगत वस्तु क्षेत्र का विस्तार किया बल्कि उच्च तकनीक विनिर्माण में असाधारण बढ़त हासिल की। चीन का निर्यात भारत की तुलना में 48 गुना अधिक है। इसका कारण यह है कि चीन ने उच्च तकनीक वाले क्षेत्र में निवेश कर, निर्माण के सभी पहलुओं को सीखा और अपनी आपूर्ति श्रृंखला को रणनीतिक रूप से वैश्विक बाजार में समायोजित किया।

जापान का उदाहरण भी अत्यंत शिक्षाप्रद है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जापान ने एमआईटीआई के माध्यम से अपनी औद्योगिक और व्यापारिक नीतियों का समन्वय किया। इससे वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में जबरदस्त उन्नति हुई और जापान विश्व विनिर्माण का केंद्र बन गया। इसका मूल कारण यह था कि उन्होंने नीति, निवेश और नवाचार को एकीकृत करते हुए उद्योगों को संरक्षण और प्रोत्साहन प्रदान किया।

चीन ने भी जापान की राह पर चलते हुए 2010 तक विश्व की सबसे बड़ी फैक्ट्री का रूप ले लिया। उसने नियम आधारित विश्व व्यापार प्रणाली को अपनाया लेकिन उसमें अपनी रणनीति का समावेश किया। विश्व व्यापार संगठन और ट्रिप्स जैसे समझौतों का लाभ उठाते हुए चीन ने अमेरिकी उत्पादन प्रणालियों की नकल कर अपनी तकनीकी क्षमताओं को विस्तार दिया और अमेरिकी कंपनियों के मूल्य निर्माण तंत्र में हस्तक्षेप किया।

भारत को यह समझना होगा कि मुक्त व्यापार कभी भी निरपेक्ष नहीं रहा। शक्तिशाली देश नियम बनाते हैं और जब ये नियम उनके अनुकूल नहीं होते तो उन्हें बदल देते हैं। विकसित राष्ट्रों द्वारा संरक्षणवादी नीति का विरोध केवल विकासशील देशों को नवाचार और निर्माण से रोकने के लिए किया जाता है। भारत को अपने नीति निर्माण में आत्मनिर्भरता, कौशल विकास और उच्च तकनीक पर आधारित उत्पादन को प्राथमिकता देनी चाहिए।

भारत की विशाल जनसंख्या को विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार देकर सामाजिक और आर्थिक दोनों ही स्थिरता प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए श्रमिकों को केवल संसाधन मानने के बजाय उन्हें परिसंपत्ति के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। जैसे जापान में श्रमिक नए कौशल सीखते गए और उद्योगों के नवाचार में सहायक बने, भारत को भी श्रम बाजार के नजरिए में बुनियादी बदलाव लाना होगा।

भारत के पास बड़ा उपभोक्ता बाजार है लेकिन यह केवल तभी आर्थिक शक्ति में बदलेगा जब आय में वृद्धि और रोजगार में विस्तार हो। इसके लिए देश को औद्योगिक संरचना के सभी स्तरों – कच्चे माल, मशीन निर्माण, कलपुर्जे और असेंबली – में सामंजस्य स्थापित करना होगा। तभी हम दीर्घकालिक औद्योगिक प्रतिस्पर्धा में टिक पाएंगे।

अंततः भारत को अपनी औद्योगिक नीति को पुनः स्थापित करते हुए उत्पादन क्षमताओं को विकसित करना होगा। यह तभी संभव है जब सरकार, उद्यमी और श्रमिक मिलकर दीर्घकालिक नीति, संरक्षण, नवाचार और कौशल के एकीकृत ढांचे पर कार्य करें। एक मजबूत विनिर्माण आधार ही भारत को वैश्विक औद्योगिक शक्ति बना सकता है।

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