क्लीन एआई: एआई डेटा सेंटर और ऊर्जा मांग पर
भारत को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रौद्योगिकी को पर्यावरणीय दृष्टिकोण से स्थिरता के साथ अपनाने की दिशा में लगातार प्रयास जारी रखने की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की हालिया रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अनुप्रयोगों से उत्पन्न होने वाले आर्थिक लाभ पर्यावरणीय लागतों को पार कर सकते हैं, जो कि बढ़ती ऊर्जा मांग से उत्पन्न होती हैं। यह रिपोर्ट स्पष्ट रूप से यह रेखांकित करती है कि यह बदलावकारी प्रौद्योगिकी वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों से असंगत नहीं है। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है कि वह अपने एआई ढांचे को इस प्रकार संरचित करें कि वह न केवल प्रौद्योगिकी में अग्रणी बने, बल्कि पर्यावरणीय समृद्धि के उद्देश्य को भी प्राप्त करे।
भारत सरकार का AI संबंधी दृष्टिकोण पहले से ही नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने की दिशा में अनुकूल है, जैसा कि पेरिस में हुए AI एक्शन समिट में प्रदर्शित हुआ था। हालांकि, भारत का एआई इंफ्रास्ट्रक्चर इस समय एक व्यापक ऊर्जा मिश्रण पर असर डालने के स्तर तक नहीं पहुंचा है, लेकिन फिर भी यह नवीकरणीय ऊर्जा के अनुसरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने का समय है। यदि भारत अपने AI क्षेत्र को सही तरीके से विकसित करता है, तो वह इसे ऊर्जा की बढ़ती मांग से उत्पन्न होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय लागतों को कम करने के रूप में एक प्रमुख अवसर में बदल सकता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकी की ऊर्जा खपत का अनुमानित वृद्धि वास्तव में चिंता का विषय बन चुका है। IMF की रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में AI के विस्तार के कारण बिजली की कीमतों में 9 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है। यह वृद्धि अन्य कीमतों में हो रहे दबावों को और बढ़ा सकती है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह चिंता और भी गहरी हो सकती है, क्योंकि यहां ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि सीधे तौर पर सामाजिक असमानताओं और गरीबों के जीवनस्तर पर प्रभाव डाल सकती है। ऐसे में, नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों का विकल्प न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सही है, बल्कि यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा को भी सुनिश्चित करने का एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
AI क्षेत्र के लिए नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग एक दीर्घकालिक समाधान के रूप में सामने आता है, खासकर डेटा केंद्रों के लिए, जो इस प्रौद्योगिकी का संचालन करते हैं। डेटा केंद्रों के पास अपनी ऊर्जा आवश्यकता को पूरी करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने की अद्वितीय क्षमता है। भारत की कई कंपनियां पहले ही सौर ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा के लिए कदम उठा चुकी हैं। डेटा केंद्रों के पास बड़ी भूमि होती है, जहां सौर पैनल जैसे उपकरणों को स्थापित किया जा सकता है, जिससे इन केंद्रों की ऊर्जा आपूर्ति के स्रोतों में विविधता आएगी और प्रदूषण कम होगा। इसके अतिरिक्त, परमाणु ऊर्जा, विशेष रूप से छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर, उभरते डेटा केंद्रों के लिए एक उपयुक्त विकल्प साबित हो सकते हैं। इन रिएक्टरों का संयोजन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ मिलकर उत्सर्जन को नियंत्रित करने में सहायक हो सकता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता का विकास न केवल ऊर्जा की खपत में वृद्धि कर रहा है, बल्कि यह खनिजों के बड़े पैमाने पर खनन, जल उपयोग और इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति श्रृंखला में प्रदूषण का कारण भी बन रहा है। यदि भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में स्थिरता और प्रतिस्पर्धा बनाए रखनी है, तो उसे इस समस्या से निपटने के लिए स्मार्ट तरीके से नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करना होगा। इस दृष्टिकोण से, भारत को AI और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन के क्षेत्रों में विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय प्रभाव को नियंत्रित करने की दिशा में पहल करनी चाहिए।
भारत का 2070 तक शुद्ध-शून्य लक्ष्य यह दर्शाता है कि उसे अपने ऊर्जा स्रोतों को संतुलित करना होगा और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए प्रभावी उपायों की आवश्यकता होगी। यह लक्ष्य न केवल पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की खपत को कम करने की दिशा में है, बल्कि यह नवीकरणीय ऊर्जा के उन्नयन और संपूर्ण उत्पादन प्रक्रियाओं में सतत प्रथाओं को अपनाने का आग्रह करता है। AI जैसे नए क्षेत्रों में विकास के साथ भारत को इन लक्ष्यों के साथ सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि वह वैश्विक मंच पर स्थायी विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को और मजबूती से पेश कर सके।
इस संदर्भ में, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसका AI और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र ऊर्जा खपत के मामले में संतुलित और पर्यावरण के अनुकूल हो। इस उद्देश्य के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए ठोस नीतियां और योजनाएं बनाई जानी चाहिए। यदि भारत AI और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों को इस दृष्टिकोण से मजबूत करता है, तो न केवल वह अपने शुद्ध-शून्य लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा, बल्कि यह उसे वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर सकता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक कदमों में नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों का अनुप्रयोग बढ़ाना, बिजली की खपत को नियंत्रित करना और प्रदूषण में कमी लाने के उपायों को लागू करना शामिल है। साथ ही, डेटा केंद्रों को नवीकरणीय ऊर्जा में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि वे उत्सर्जन में कमी के साथ अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। यह कदम न केवल भारत की ऊर्जा नीतियों के सुधार में सहायक होगा, बल्कि यह वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत को अधिक शक्तिशाली बना सकता है।
सारांश में, भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह AI और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा का समावेश करें, ताकि न केवल उसकी विकासात्मक आकांक्षाएँ पूरी हो सकें, बल्कि पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को भी नियंत्रित किया जा सके। यदि भारत इस दिशा में ठोस कदम उठाता है, तो वह न केवल वैश्विक ऊर्जा नीति में एक नेतृत्व भूमिका निभा सकता है, बल्कि स्थिर और सतत विकास की ओर भी अग्रसर हो सकता है।