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प्रश्न: वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि और मानव आबादी के विस्तार के कारण पृथ्वी का बड़ा हिस्सा मरुस्थलीकरण या ‘कृषि योग्य भूमि के स्थायी क्षरण’ के प्रति संवेदनशील होता जा रहा हैं। उपरोक्त कथन के आलोक में मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) किस प्रकार एक मूल्यवान सहयोगी की भूमिका निभा सकती है? साथ ही, इसके उपयोग संबंधी चुनौतियों की चर्चा भी कीजिए।

Due to the continuous increase in global temperature and expansion of human population, large parts of the earth are becoming vulnerable to desertification or ‘permanent degradation of cultivable land’. In the light of the above statement, how can Artificial Intelligence (AI) play a valuable role in combating desertification? Also, discuss the challenges related to its use.

उत्तर: मरुस्थलीकरण एक पर्यावरणीय समस्या है जिसमें कृषि योग्य भूमि जलवायु परिवर्तन, अति दोहन और असंतुलित प्राकृतिक संसाधन उपयोग के कारण बंजर होती जा रही है। AI का उपयोग इस समस्या के समाधान के लिए किया जा सकता है, जिससे भूमि की निगरानी, जल संरक्षण और स्मार्ट कृषि रणनीतियों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके।

मरुस्थलीकरण के खिलाफ AI का योगदान

(1) भूमि निगरानी और विश्लेषण: AI उपग्रह चित्र और सेंसर डेटा का विश्लेषण करके भूमि की गुणवत्ता की निगरानी करता है। इससे मरुस्थलीकरण के शुरुआती संकेतों का पता चलता है, जिससे समय पर सही उपाय किए जा सकते हैं और भूमि के क्षरण को नियंत्रित किया जा सकता है।

(2) सटीक कृषि तकनीक: AI आधारित स्वचालित सिंचाई और पोषक तत्व प्रबंधन से मरुस्थलीकरण प्रभावित भूमि पर फसल उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। यह प्रणाली जल और पोषक तत्वों का सही वितरण सुनिश्चित करती है, जिससे संसाधनों का अधिकतम उपयोग और भूमि की रक्षा होती है।

(3) वनीकरण योजनाएं: AI वनस्पति वृद्धि पर निगरानी रखकर आदर्श वनीकरण स्थानों का चयन करता है। इससे हरित क्षेत्र को पुनर्स्थापित करने में मदद मिलती है, जिससे मरुस्थलीकरण को रोका जा सकता है और पारिस्थितिकी तंत्र को पुनः संतुलित किया जा सकता है।

(4) जल प्रबंधन: AI जल स्रोतों की निगरानी करता है और जल संरक्षण के लिए प्रभावी उपायों की सिफारिश करता है। यह विशेष रूप से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल की उपलब्धता और संरक्षण में मदद करता है, जिससे मरुस्थलीकरण की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।

(5) भूमि पुनर्वास की योजना: AI भूमि के क्षरण को विश्लेषित कर पुनर्वास के लिए उपयुक्त फसलें और जैविक उपाय सुझाता है। इससे मरुस्थलीकरण से प्रभावित क्षेत्रों की कृषि उत्पादकता को बहाल किया जा सकता है और भूमि की उपजाऊ क्षमता को फिर से बढ़ाया जा सकता है।

AI के उपयोग में आने वाली चुनौतियां

(1) डेटा की सीमित उपलब्धता: AI के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उच्च गुणवत्ता वाले और विस्तृत वास्तविक समय डेटा की आवश्यकता होती है। मरुस्थलीकरण पर आधारित डेटा की सीमित उपलब्धता AI के लिए एक प्रमुख चुनौती है, क्योंकि बिना पर्याप्त डेटा के सही परिणाम प्राप्त करना संभव नहीं है।

(2) तकनीकी पहुंच की बाधाएं: ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में AI तकनीकों के उपयोग के लिए बुनियादी ढांचे की भारी कमी है। इन क्षेत्रों में इंटरनेट, बिजली और उन्नत तकनीकी उपकरणों की उपलब्धता सीमित होती है, जो AI के प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा डालती है।

(3) उच्च लागत और संसाधनों की जरूरत: AI आधारित समाधानों का विकास और कार्यान्वयन उच्च निवेश और संसाधनों की मांग करता है। भारत जैसे विकासशील देशों में जहां संसाधनों की कमी है, वहां इन तकनीकों को लागू करना आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

(4) स्थानीय समुदायों की स्वीकार्यता: AI प्रौद्योगिकियों का प्रभावी उपयोग स्थानीय समुदायों की स्वीकार्यता पर निर्भर करता है। किसानों को AI के उपयोग के लाभों के प्रति जागरूक करना और उन्हें प्रशिक्षित करना महत्वपूर्ण है, ताकि वे इन तकनीकों को अपनाकर मरुस्थलीकरण से निपट सकें।

(5) नीति और नियामक चुनौतियां: AI आधारित पर्यावरणीय प्रबंधन के लिए स्पष्ट और समग्र नीतियों की आवश्यकता होती है। यदि नीति निर्माण में स्पष्टता और दिशा की कमी होती है, तो AI का प्रभावी उपयोग और दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित नहीं हो सकती है, जिससे पर्यावरणीय लक्ष्य प्रभावित हो सकते हैं।

भारत में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के सही उपयोग से मरुस्थलीकरण को रोकने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की जा सकती है। हालांकि, इसके व्यापक क्रियान्वयन के लिए उचित नीति, डेटा उपलब्धता और तकनीकी पहुंच को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

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