प्रश्न: भारत में कृषि, स्वास्थ्य सेवा और उद्योग जैसे क्षेत्रों को आगे बढ़ाने में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
Examine the role of biotechnology in advancing sectors such as agriculture, healthcare and industry in India.
उत्तर: जैव प्रौद्योगिकी, जीवों, कोशिकाओं और जैविक प्रक्रियाओं का उपयोग करके उत्पादों एवं सेवाओं के नवाचार की वैज्ञानिक शाखा है। भारत में, यह कृषि, स्वास्थ्य और उद्योगों को विकसित करने में सहायक सिद्ध हो रही है। इस तकनीक के माध्यम से जीएम फसलें, जैविक चिकित्सा, जैव-ईंधन, पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद और विकसित बीज जैसी तकनीकों को बढ़ावा मिल रहा है।
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका:
(1) जीएम फसलें: अनुवांशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें कीटों से बचाव, उच्च पैदावार और प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में भी टिकाऊ होती हैं। ये फसलें किसानों की आय बढ़ाने में मदद करती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है। भारत में बीटी कपास इसका सफल उदाहरण है, जिसने किसानों को बेहतर उत्पादन और आय का अवसर प्रदान किया है।
(2) जैविक खाद एवं उर्वरक: जैविक खादों का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने तथा पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने में होता है। ये रासायनिक उर्वरकों की तुलना में सुरक्षित होते हैं और लंबे समय तक स्थायी कृषि उत्पादन में सहायक होते हैं। जैव उर्वरक माइक्रोबियल क्रियाओं द्वारा मिट्टी के पोषण में सुधार करते हैं, जिससे उत्पादकता बढ़ती है।
(3) टिशू कल्चर तकनीक: इस तकनीक के माध्यम से पौधों के ऊतकों से नई और उन्नत किस्में विकसित की जाती हैं। यह जैव प्रौद्योगिकी विधि कम समय में अधिक पौधों के उत्पादन में सहायक होती है और रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। भारत में केले, आलू और शकरकंद जैसी फसलों में इस तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग किया जाता है।
(4) बीज गुणवत्ता सुधार: जैव प्रौद्योगिकी द्वारा उच्च गुणवत्ता वाले बीज विकसित किए जाते हैं, जो अधिक पैदावार देने में सक्षम होते हैं। उन्नत बीजों में पोषण तत्वों की उच्च मात्रा होती है, जिससे कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर होती है। भारत में धान और गेहूं के उन्नत बीजों का उपयोग किसानों की उत्पादकता को बढ़ाने में मदद करता है।
(5) संरक्षित कृषि: जैव प्रौद्योगिकी द्वारा नियंत्रित वातावरण में खेती की जाती है, जिससे फसलों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से बचाया जा सकता है। ग्रीनहाउस तकनीक और हाइड्रोपोनिक्स जैसी विधियों का प्रयोग कर कृषि उत्पादकता को बढ़ाया जा रहा है। इस तकनीक से पानी की खपत कम होती है और पर्यावरण संरक्षण संभव होता है।
स्वास्थ्य सेवा एवं उद्योग में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका:
(1) बायोफार्मास्युटिकल्स: जैव प्रौद्योगिकी द्वारा टीके, इंसुलिन, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी और अन्य दवाओं का निर्माण किया जाता है। इस क्षेत्र ने कोविड-19 महामारी के दौरान भारत को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है, जिससे देश में स्वदेशी वैक्सीन का निर्माण संभव हुआ। यह तकनीक स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता और पहुंच को बढ़ाने में सहायक है।
(2) जीन थेरेपी: अनुवांशिक विकारों के इलाज हेतु जीन थेरेपी का उपयोग किया जाता है, जिससे वंशानुगत बीमारियों का प्रभावी उपचार संभव होता है। यह विधि आनुवंशिक दोषों को ठीक करने में सहायक होती है और दुर्लभ बीमारियों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में आनुवंशिक अनुसंधान केंद्र इस दिशा में अग्रसर हैं।
(3) बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक: पर्यावरण-संरक्षण के लिए जैव प्रौद्योगिकी आधारित प्लास्टिक विकसित किया जाता है, जिससे प्रदूषण को नियंत्रित किया जाता है। पारंपरिक प्लास्टिक के स्थान पर जैव-निम्नीकरणीय सामग्री के उपयोग से भारत में पर्यावरणीय संकट को कम करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है।
(4) जैव-ईंधन उत्पादन: जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से जैव-ईंधनों का उत्पादन किया जाता है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है और स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त होती है। भारत में गन्ने के अवशेषों से बायो-एथेनॉल का उत्पादन किया जा रहा है, जिससे ऊर्जा क्षेत्र में स्थिरता और आत्मनिर्भरता बढ़ रही है।
(5) प्रदूषण नियंत्रण: जैव प्रौद्योगिकी जल, वायु और मिट्टी के प्रदूषण को नियंत्रित करने में सहायक होती है। बैक्टीरिया और माइक्रोबियल तकनीकों के उपयोग से अपशिष्ट जल का शुद्धिकरण किया जाता है। भारत में औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन में जैव तकनीकों का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे पर्यावरण संरक्षण संभव हो रहा है।
भारत में जैव प्रौद्योगिकी के प्रभाव से कृषि, स्वास्थ्य सेवा एवं उद्योगों में तेजी से सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं। यह तकनीक नवाचार और सतत विकास को बढ़ावा देती है, जिससे आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति सुनिश्चित होती है। सरकार की सक्रिय नीतियां और उन्नत शोध कार्यों के माध्यम से इस क्षेत्र का निरंतर विस्तार हो रहा है। भविष्य में, भारत वैश्विक जैव-प्रौद्योगिकी केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है।