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पश्चिम एशिया में भारत की बढ़ती पैठ

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘पश्चिम की ओर देखो’ नीति ने भारत को पश्चिम एशिया में एक गंभीर रणनीतिक साझेदार के रूप में स्थापित किया है। सऊदी अरब के साथ बढ़ती निकटता, यूएई, ओमान, बहरीन, कतर और कुवैत से घनिष्ठ संबंधों की निरंतरता, भारत की आर्थिक और भू-राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने में सहायक बनी है। इन देशों में की गई बारंबार यात्राओं से भारत ने पारंपरिक तेल आधारित संबंधों से आगे बढ़कर बहुआयामी साझेदारियां विकसित की हैं, जिससे भारत की भूमिका केवल ऊर्जा उपभोक्ता तक सीमित नहीं रही।

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ प्रधानमंत्री मोदी की आत्मीयता ने द्विपक्षीय रिश्तों को गहराई दी है। एमबीएस की प्रगतिशील नीतियों और कट्टरपंथी तत्वों पर सख्ती के साथ उदारीकरण की राह पर बढ़ते सऊदी अरब को भारत का सहयोगी बनाना भू-राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। सऊदी की इजरायल के प्रति बदलती सोच और पाकिस्तान से दूरी, भारत की पश्चिम एशिया में स्वीकार्यता को नया आधार दे रही है, जो परंपरागत रिश्तों की पुनर्रचना है।

आईएमईसी (इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर) इस क्षेत्रीय समीकरण का केंद्रबिंदु बन चुका है। भारत इसका प्रारंभिक सिरा और रणनीतिक धुरी है। यह गलियारा केवल वाणिज्यिक नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और भू-राजनीतिक पुनर्संरचना का भी वाहक है। सऊदी अरब, इजरायल और अमेरिका की भागीदारी के साथ भारत की अग्रणी भूमिका, वैश्विक दक्षिण को वैश्विक उत्तर से जोड़ने में निर्णायक हो सकती है, बशर्ते क्षेत्र में शांति बहाल हो।

सऊदी अरब भारत का पाँचवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। द्विपक्षीय व्यापार 43 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है और सऊदी निवेश भारत में 10 अरब डॉलर को पार कर गया है। इसके अतिरिक्त 100 अरब डॉलर के भावी निवेश का वादा भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए निर्णायक हो सकता है। सामरिक तेल भंडारण में अरामको की भागीदारी और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के लिए ये साझेदारियां अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

भारत और सऊदी अरब के संबंध अब रक्षा क्षेत्र तक विस्तारित हो गए हैं। रक्षा सामग्री का निर्यात, संयुक्त सैन्य अभ्यास और रणनीतिक संवाद इस साझेदारी को नई गहराई दे रहे हैं। लाल सागर में हाउती विद्रोहियों के खिलाफ सहयोग, क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा में भारत की भूमिका को रेखांकित करता है। यह परंपरागत अमेरिकी निर्भरता से इतर सऊदी की नीति में एक नया झुकाव प्रदर्शित करता है।

सऊदी अरब ने भारत से 2.25 करोड़ डॉलर मूल्य के हथियारों की खरीद और उन्नत तोपों की मांग करके भारत को रक्षा क्षेत्र में एक भरोसेमंद साझेदार माना है। अमेरिका की सुरक्षा प्रतिबद्धताओं पर घटते भरोसे और पाकिस्तान पर बढ़ती अनिश्चितता के बीच भारत की सैन्य विश्वसनीयता सऊदी रणनीति में केंद्र में आ रही है। यह भारत के लिए न केवल निर्यात का अवसर है, बल्कि रणनीतिक प्रभाव विस्तार का माध्यम भी है।

खाड़ी देशों में भारत के करोड़ों प्रवासी श्रमिकों की उपस्थिति एक मानवीय और आर्थिक सेतु का काम करती है। ये प्रवासी न केवल रेमिटेंस भेजते हैं, बल्कि द्विपक्षीय रिश्तों की सामाजिक बुनियाद को भी मज़बूत करते हैं। खाड़ी देशों द्वारा भारत के साथ सामाजिक सुरक्षा समझौतों पर बढ़ती सहमति, श्रमिकों की स्थिति को संरक्षित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण संकेत है, जिससे दोनों पक्षों को लाभ होता है।

पाकिस्तान पर सऊदी और यूएई का रणनीतिक दृष्टिकोण अब भारत के पक्ष में झुक रहा है। जम्मू-कश्मीर पर इन देशों की तटस्थता और आतंकवाद पर सख्ती ने भारत की सुरक्षा और वैश्विक छवि को बल दिया है। कई पाक समर्थित आतंकियों को सऊदी और यूएई द्वारा भारत को सौंपना, इस बदलाव का ठोस उदाहरण है। यह भारत की प्रभावशाली कूटनीति और सधी रणनीति की सफलता का परिचायक है।

खुफिया और सुरक्षा सहयोग में तेजी से प्रगति हो रही है। आतंकवाद विरोधी कार्रवाई में तालमेल और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में बढ़ता सहयोग, एक नए युग का संकेत दे रहा है। इससे भारत की आंतरिक सुरक्षा और खाड़ी क्षेत्र की स्थिरता को समान रूप से लाभ हो रहा है। भारत-सऊदी साझेदारी अब बहुआयामी रणनीतिक साझेदारी का रूप ले चुकी है जो दीर्घकालीन हितों पर आधारित है।

भारत की पश्चिम एशिया नीति, जिसमें संतुलन, संवाद और सक्रियता के सिद्धांत प्रमुख हैं, अब एक निर्णायक मोड़ पर है। खाड़ी में भारत की बढ़ती उपस्थिति, उसे केवल एक आर्थिक साझेदार नहीं, बल्कि एक प्रभावशाली क्षेत्रीय शक्ति में रूपांतरित कर रही है। सऊदी अरब जैसे शक्तिशाली देश के साथ यह गहरी साझेदारी, भारत को वैश्विक राजनीति के उच्च पटल पर प्रतिष्ठित कर सकती है।

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