प्रश्न: पूर्वोत्तर में चक्रवाती बारिश के कारण हुए भू-स्खलन ने आपदाओं के प्रति लचीलेपन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। इस संदर्भ में भू-स्खलन के संभावित कारणों और प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
Landslides caused by cyclonic rains in the Northeast have highlighted the need for disaster resilience. Explain the possible causes and effects of landslides in this context.
उत्तर: भू-स्खलन एक प्राकृतिक आपदा है जिसमें चट्टान, मिट्टी और मलबा गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से ढलान पर नीचे की ओर खिसकता है। भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में चक्रवाती बारिश के कारण भू-स्खलन की घटनाएँ अधिक होती हैं, जिससे जन-धन की हानि होती है। यह आपदा भौगोलिक, पर्यावरणीय और मानवजनित कारणों से उत्पन्न होती है।
भू-स्खलन के संभावित कारण
(1) भौगोलिक संरचना: पूर्वोत्तर भारत में युवा और कमजोर चट्टानें पाई जाती हैं, जो भू-स्खलन के प्रति संवेदनशील होती हैं। इन चट्टानों की संरचना कमजोर होने के कारण वे भारी वर्षा और भूकंप के प्रभाव में आसानी से खिसक जाती हैं.
(2) अत्यधिक वर्षा: चक्रवाती बारिश मिट्टी को संतृप्त कर देती है, जिससे उसकी स्थिरता कम हो जाती है और भू-स्खलन की संभावना बढ़ जाती है। लगातार भारी वर्षा से मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है, जिससे ढलानों पर दबाव बढ़ता है।
(3) वनों की कटाई: वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बाँधकर रखती हैं, लेकिन वनों की कटाई से यह सुरक्षा समाप्त हो जाती है। जब पेड़ों को काटा जाता है, तो मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है और ढलान अस्थिर हो जाता है।
(4) भूकंपीय गतिविधियाँ: पूर्वोत्तर भारत भूकंप-प्रवण क्षेत्र है, जिससे भूमि की संरचना कमजोर होती है और भू-स्खलन की घटनाएँ बढ़ती हैं। भूकंप के झटकों से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं, जिससे वे खिसकने लगती हैं।
(5) मानवजनित गतिविधियाँ: अनियंत्रित निर्माण कार्य, सड़क निर्माण और खनन गतिविधियाँ भू-स्खलन को बढ़ावा देती हैं। जब पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य किए जाते हैं, तो मिट्टी की स्थिरता प्रभावित होती है।
भू-स्खलन के संभावित प्रभाव
(1) जन-धन की हानि: भू-स्खलन से जान-माल की हानि होती है, जिससे प्रभावित क्षेत्रों में जीवन कठिन हो जाता है। कई बार यह आपदा अचानक आती है, जिससे लोगों को बचने का अवसर नहीं मिलता।
(2) परिवहन बाधित: सड़कें और रेलमार्ग क्षतिग्रस्त होने से यातायात प्रभावित होता है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला बाधित होती है। भू-स्खलन के कारण सड़कें बंद हो जाती हैं, जिससे राहत कार्यों में कठिनाई होती है।
(3) पर्यावरणीय क्षति: मिट्टी का कटाव बढ़ने से जैव विविधता प्रभावित होती है और पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है। जब मिट्टी बह जाती है, तो वनस्पति और जीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाता है।
(4) आर्थिक प्रभाव: कृषि भूमि नष्ट होने से किसानों की आजीविका प्रभावित होती है और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब खेतों में मिट्टी का कटाव होता है, तो फसल उत्पादन में गिरावट आती है।
(5) पुनर्वास की चुनौती: प्रभावित लोगों के पुनर्वास और पुनर्निर्माण में सरकार को भारी संसाधनों की आवश्यकता होती है। राहत कार्यों के लिए बड़े पैमाने पर धन और श्रम की आवश्यकता होती है।
पूर्वोत्तर भारत में भू-स्खलन एक गंभीर समस्या है, जिसे रोकने के लिए सतत प्रयासों की आवश्यकता है। आपदा प्रबंधन, सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के माध्यम से इस चुनौती का सामना किया जा सकता है। सरकार और समाज को मिलकर लचीलेपन को बढ़ावा देना चाहिए ताकि भविष्य में इस प्रकार की आपदाओं से प्रभावी रूप से निपटा जा सके।