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पहलगाम हमले पर संयम से जवाबी कार्रवाई की जानी चाहिए

जम्मू-कश्मीर के लोकप्रिय पर्यटन स्थल पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 28 लोगों की मृत्यु ने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है। यह घटना न केवल मानवीय त्रासदी है, बल्कि इसके गहरे रणनीतिक और राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। आतंकी संगठनों का यह उद्देश्य स्पष्ट रूप से सामने आता है कि वे कश्मीर में सामान्य होते हालात और बढ़ते पर्यटन को बाधित करना चाहते हैं। बीते वर्षों में घाटी में पर्यटकों की संख्या में निरंतर वृद्धि इस क्षेत्र के शांतिपूर्ण भविष्य की ओर संकेत कर रही थी, जिसे यह हमला एक बार फिर से पीछे धकेलने की कोशिश है।

पर्यटन को घाटी की अर्थव्यवस्था का मेरुदंड माना जाता है। 2015 में जहां 1.3 करोड़ पर्यटक आए थे, वहीं 2023 में यह संख्या बढ़कर 2.1 करोड़ तक पहुंच चुकी थी। यह एक सकारात्मक संकेत था कि देश-विदेश के लोगों का कश्मीर में विश्वास बढ़ रहा है। लेकिन इस हमले से यह विश्वास हिल गया है। पर्यटकों में भय का वातावरण बनना स्वाभाविक है, जिससे न केवल पर्यटन पर प्रभाव पड़ेगा, बल्कि उससे जुड़े लाखों लोगों की आजीविका भी संकट में पड़ सकती है। यह सरकार के लिए एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक चुनौती बनकर उभरा है।

सरकार के समक्ष दूसरी प्रमुख चुनौती हमले की निष्पक्ष और तीव्र जांच करना है। इसमें सुरक्षा तंत्र की कमजोरियों को चिन्हित करना और खुफिया तंत्र को पुनर्संगठित करना अनिवार्य हो गया है। हाल के वर्षों में ऐसे कई हमले हुए हैं, जो दर्शाते हैं कि आतंकी संगठन घाटी के बाहर भी अपने प्रभाव का विस्तार कर रहे हैं। चाहे तीर्थयात्रियों पर बस हमला हो या प्रवासी श्रमिकों की हत्या—सभी घटनाएं आतंकियों की सुनियोजित योजना का हिस्सा प्रतीत होती हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि मौजूदा सुरक्षा तंत्र को उन्नत और आधुनिक बनाने की सख्त आवश्यकता है।

2019 के बाद से आतंकी गतिविधियों में एक नया ट्रेंड सामने आया है। अब ये संगठन पारंपरिक रूप से सीमित इलाकों से बाहर निकलकर जम्मू क्षेत्र में भी सक्रिय हो गए हैं। 2021 से 2024 के बीच जम्मू में हुए 30 आतंकी हमलों में कई निर्दोष नागरिक मारे गए। इससे यह प्रतीत होता है कि आतंकियों की रणनीति बदल रही है और उन्हें कहीं न कहीं स्थानीय सहयोग भी मिल रहा है। यह खुफिया एजेंसियों के लिए गंभीर चिंतन का विषय है कि किस प्रकार आतंकी नेटवर्क अपना दायरा बढ़ा रहे हैं।

घटना के समय का चुनाव भी प्रतीकात्मक है। यह उन घटनाओं के आसपास हुआ है, जो भारत की विदेश नीति और रणनीतिक समीकरणों को दर्शाते हैं। जैसे कि कनाडाई-अमेरिकी तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण या अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की भारत यात्रा। इन घटनाओं से पाकिस्तान की असहजता बढ़ी है और उसने कश्मीर को एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उछालने की कोशिश की है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख द्वारा ‘गर्दन की नस’ वाला बयान इस हमले की पृष्ठभूमि को और अधिक संदिग्ध बनाता है।

इस स्थिति में भारत सरकार को द्विस्तरीय प्रतिक्रिया देनी चाहिए—एक ओर कठोर सुरक्षा उपाय और दूसरी ओर संयमित सार्वजनिक प्रतिक्रिया। सोशल मीडिया के दौर में अफवाहों और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से माहौल बिगड़ सकता है। विशेषकर जब यह आशंका हो कि हमले में धार्मिक पहचान के आधार पर लोगों को निशाना बनाया गया है, तो सरकार की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखना इस समय की सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।

संवेदनशील क्षेत्रों में सामाजिक सौहार्द और संवाद को बढ़ावा देना आवश्यक है। जम्मू-कश्मीर की जटिलता केवल सुरक्षा से नहीं सुलझाई जा सकती, बल्कि उसमें राजनीतिक भागीदारी, आर्थिक समावेशन और सामाजिक सहयोग का भी महत्वपूर्ण स्थान है। स्थानीय लोगों की आशाओं, आकांक्षाओं और आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए नीतिगत निर्णय लिए जाने चाहिए। इसमें स्थानीय प्रतिनिधियों और समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना दीर्घकालिक समाधान का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

सरकार को इस समय संयम से काम लेते हुए संपूर्ण सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा करनी चाहिए। घटनास्थल के आसपास इंटेलिजेंस ग्रिड को और अधिक मजबूत करना, सीमावर्ती इलाकों में गश्त बढ़ाना, और संवेदनशील क्षेत्रों में आधुनिक निगरानी उपकरण लगाना आवश्यक है। साथ ही, पर्यटकों की सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम करते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।

वर्तमान चुनौती केवल आतंकवाद से नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर सामंजस्य बनाए रखने की भी है। यदि सरकार जल्दबाज़ी में आकर प्रतिक्रियावादी कदम उठाती है तो इससे घाटी में तनाव और अधिक बढ़ सकता है। अतः नीति-निर्माताओं को गहराई से सोचकर, व्यापक परामर्श के साथ और संवेदनशीलता दिखाते हुए कदम उठाने होंगे ताकि सामान्य जनजीवन बहाल हो और शांति का मार्ग प्रशस्त हो।

अंततः यह आवश्यक है कि भारत ऐसी आतंकी घटनाओं का न केवल सैन्य बल्कि वैचारिक और कूटनीतिक स्तर पर भी उत्तर दे। राष्ट्रीय एकता, सामाजिक सद्भाव और रणनीतिक दूरदृष्टि के सम्मिलन से ही जम्मू-कश्मीर में स्थायी शांति और समृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है। संयमित और दृढ़ प्रतिकार ही भारत की परिपक्व लोकतांत्रिक शक्ति का परिचायक होना चाहिए।

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